Chief Justice DY Chandrachud: भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपने अंतिम फैसले में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज में हुई बुलडोजर कार्रवाई की कड़ी आलोचना करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि “बुलडोजर से न्याय” किसी भी न्यायिक प्रणाली का हिस्सा नहीं हो सकता। उन्होंने यह टिप्पणी उस समय की, जब सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने महाराजगंज में अवैध कब्जों को हटाने के लिए चलाए गए बुलडोजर अभियान को चुनौती दी थी। यह फैसला न केवल उत्तर प्रदेश की बुलडोजर कार्रवाई पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि भारतीय न्यायपालिका की निष्पक्षता और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को भी स्पष्ट करता है।
मुख्य न्यायाधीश का स्पष्ट संदेश: बुलडोजर से न्याय अस्वीकार्य
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी भी सभ्य न्यायिक प्रणाली में बुलडोजर से न्याय नहीं किया जा सकता। उनका यह बयान लोकतंत्र, संविधान और कानून के सिद्धांतों के खिलाफ किसी भी तरह की मनमानी और हिंसा को अस्वीकार करता है। चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा कि राज्य सरकारों को अवैध कब्जों को हटाने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए, न कि किसी के घरों को बुलडोजर से नष्ट करना। उनका यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की ओर से लोकतंत्र और कानून के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि यह कदम केवल एकतरफा और असंवैधानिक है, क्योंकि किसी भी न्यायिक प्रणाली में न्याय का वितरण केवल कानूनी और संविधानिक ढांचे के तहत ही होना चाहिए। उन्होंने न्यायपालिका के दायित्व की बात की, जो यह सुनिश्चित करता है कि वह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे, न कि किसी तरह की हिंसा और अराजकता को बढ़ावा दे।
चंद्रचूड़ ने संविधान के अनुच्छेद 300A का हवाला देते हुए कहा कि अगर किसी व्यक्ति की संपत्ति को बिना किसी वैध कारण के बुलडोजर से नष्ट कर दिया जाता है, तो यह संविधान द्वारा दिए गए संपत्ति के अधिकार को नष्ट कर सकता है। अनुच्छेद 300A के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी प्राधिकरण के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय न्यायपालिका संविधान के मूल सिद्धांतों की रक्षा के लिए कठोर कदम उठाने को तैयार है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि राज्य सरकार किसी नागरिक के घर को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के बुलडोजर से नष्ट करती है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 300A का उल्लंघन है और इसे किसी भी प्रकार से न्यायिक तौर पर सही ठहराया नहीं जा सकता। इस फैसले ने यह संदेश दिया कि भारतीय न्यायपालिका ने संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बरकरार रखते हुए, किसी भी असंवैधानिक प्रक्रिया को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।
“25 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए”: चंद्रचूड़ का आदेश
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश सरकार की बुलडोजर कार्रवाई पर कड़ी आपत्ति जताई और सवाल किया, “क्यों लोगों के घर इस तरह से ढाहे जा रहे हैं?” उन्होंने कहा कि बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के घरों को नष्ट करना पूरी तरह से मनमाना और असंवैधानिक है। चंद्रचूड़ ने यह आदेश दिया कि जिन लोगों के घर इस कार्रवाई में नष्ट हुए हैं, उन्हें मुआवजा दिया जाए। उन्होंने विशेष रूप से निर्देश दिया कि उन पीड़ितों को 25 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए, जिनके घर इस बुलडोजर कार्रवाई में नष्ट हुए।
यह आदेश न केवल राज्य सरकारों के लिए एक चेतावनी है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय रूप से कदम उठा रहा है। यह फैसला न्यायपालिका की प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह हर किसी को कानूनी सुरक्षा और मुआवजा प्रदान करेगा, यदि उनकी संपत्ति को अवैध तरीके से नष्ट किया जाता है।
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का सुप्रीम कोर्ट से विदाई
आज, मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ का सुप्रीम कोर्ट से कार्यकाल समाप्त हो रहा है। 9 नवंबर 2022 को उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी, और अब न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को उनके स्थान पर नया मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। चंद्रचूड़ का कार्यकाल न्यायिक सुधारों, नागरिक स्वतंत्रताओं और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए याद किया जाएगा। उनके फैसलों ने यह साबित किया है कि न्यायपालिका किसी भी प्रकार की राज्य सत्ता के दुरुपयोग या गलत प्रक्रिया को अस्वीकार करने में पूरी तरह से सक्षम है।
चंद्रचूड़ का योगदान: न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की रक्षा
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने हमेशा न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके फैसलों ने न्यायपालिका की निष्पक्षता और समाज के हर वर्ग के अधिकारों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान किया। उनका यह अंतिम निर्णय यह संदेश देता है कि भारतीय न्यायपालिका अपने सिद्धांतों और अधिकारों की रक्षा के लिए कठोर कदम उठाएगी। यह सिद्धांत कि न्याय कानूनी प्रक्रिया के दायरे में होना चाहिए, न कि किसी हिंसा या अराजकता के माध्यम से, लोकतंत्र के लिए एक मजबूत संदेश है।
न्यायपालिका की भूमिका में अहम मोड़
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का यह बयान और उनके कार्यकाल का समापन भारतीय न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह घटना एक संकेत है कि भारतीय न्यायपालिका ने अपनी निष्पक्षता और लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक सशक्त रुख अपनाया है। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी दबाव से ऊपर है और वह संविधान के सिद्धांतों की पूरी तरह से रक्षा करेगी।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ का कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में समाप्त हो रहा है। उनका यह अंतिम निर्णय भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता, नागरिकों के अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस फैसले के साथ, न्यायपालिका ने एक मजबूत संदेश दिया है कि न्याय केवल कानून और संविधान के दायरे में होना चाहिए और किसी भी प्रकार की मनमानी और अराजकता को अस्वीकार किया जाएगा। यह कदम भारतीय न्यायपालिका के लिए एक स्थायी धरोहर बनेगा, जो नागरिकों के अधिकारों और लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक मिसाल के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।