Supreme Court ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है कि पत्रकारों के खिलाफ केवल इसलिए आपराधिक मामले नहीं दर्ज किए जाने चाहिए क्योंकि उनकी रचनाएँ सरकार की आलोचना मानी जाती हैं। न्यायमूर्ति हृषिकेश राय और एसवीएन भट्ट की पीठ ने यह टिप्पणी की जब वे पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की है।
अभिषेक उपाध्याय की याचिका
अभिषेक उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि उनकी एफआईआर जातिगत भेदभाव के विषय पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के संबंध में दर्ज की गई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि इस एफआईआर का उद्देश्य उनकी आवाज को दबाना और कानून प्रवर्तन मशीनरी का दुरुपयोग करना है। उनके अनुसार, यह पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर गंभीर हमला है और इसे तुरंत रद्द किया जाना चाहिए ताकि आगे की परेशानियों से बचा जा सके।
अदालत की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस याचिका पर नोटिस जारी किया और यह भी कहा कि इस विषय पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। पीठ ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता के वकील ने एफआईआर का अध्ययन करने के बाद कहा कि इस एफआईआर में कोई अपराध प्रकट नहीं होता है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का महत्व
कोर्ट ने कहा कि लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए और पत्रकारों के अधिकारों की सुरक्षा संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत की गई है। यह अनुच्छेद पत्रकारों को अपनी रचनाओं के माध्यम से अपनी आवाज उठाने का अधिकार देता है, जिससे लोकतंत्र में पारदर्शिता और जिम्मेदारी सुनिश्चित होती है।
आगे की कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की है। इस दौरान, अभिषेक उपाध्याय को किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई से बचाने के निर्देश दिए गए हैं। यह निर्णय पत्रकारिता के क्षेत्र में एक सकारात्मक कदम है, जो न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मान्यता देता है, बल्कि पत्रकारों के खिलाफ हो रही अत्याचारों के खिलाफ एक सुरक्षा कवच भी प्रदान करता है।
न्यायपालिका की भूमिका
यह फैसला यह संकेत करता है कि न्यायपालिका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षण के प्रति गंभीर है। पत्रकारों को अपनी रचनाओं के माध्यम से बिना किसी डर के अपनी बात रखने का अधिकार है। यदि उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जाते हैं, तो यह न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह लोकतंत्र के लिए भी खतरा है।