Uttar Pradesh by-election: उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव को लेकर सियासी जंग जारी है। आज नामांकन का आखिरी दिन है और यह उपचुनाव अगले विधानसभा चुनावों के पहले एक सेमी-फाइनल मुकाबले के रूप में देखा जा रहा है। नौ विधानसभा सीटों पर होने वाले इस चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अपने आठ उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जबकि एक सीट अपने सहयोगी रालोद (RLD) को दी है। भाजपा, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने नामांकन के एक दिन पहले उम्मीदवारों की सूची फाइनल की।
उम्मीदवारों का चयन और राजनीतिक दलों की स्थिति
भाजपा ने 9 में से 8 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि एक सीट (मीरापुर) अपने सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल को दी है। समाजवादी पार्टी ने सभी 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। दूसरी तरफ, मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी सभी नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। कांग्रेस ने इस सेमी-फाइनल मुकाबले में पहले ही हार मान ली है। समाजवादी पार्टी के साथ सीट शेयरिंग पर सहमति न बन पाने के कारण कांग्रेस ने कोई भी उम्मीदवार नहीं उतारने का निर्णय लिया।
इस मुकाबले में जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर है, वहीं अखिलेश यादव का PDA (पिछड़ा, दलित, और अल्पसंख्यक) भी कसौटी पर है। लोकसभा चुनाव के बाद यह भी देखने को मिलेगा कि अखिलेश का PDA कितना प्रभावी रहता है और मायावती का हाथी दोबारा उठता है या नहीं। जिन 9 सीटों पर यह मुकाबला हो रहा है, उनमें से 5 सीटें भाजपा के पास थीं और 4 सीटें अखिलेश के पास थीं।
योगी आदित्यनाथ का चुनावी तैयारी पर जोर
उत्तर प्रदेश में 2024 लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिले झटके के बाद पार्टी में हलचल मच गई थी। कुछ वरिष्ठ नेताओं ने सरकार के कामकाज पर सवाल उठाए थे। अब उपचुनावों में योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा दांव पर है। लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद योगी आदित्यनाथ ने सक्रिय होकर उपचुनावों की तैयारियां शुरू कर दीं। उन्होंने इन उपचुनावों को पार्टी की प्रतिष्ठा को बहाल करने और विरोधियों को संदेश देने के अवसर के रूप में देखा।
मुख्यमंत्री ने सभी निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा किया और स्थानीय पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कीं, ताकि प्रचार अभियान की रणनीति बनाई जा सके। उन्होंने इन सभी विधानसभा क्षेत्रों में कई जनसभाओं को भी संबोधित किया। इसके अलावा, राज्य सरकार ने युवाओं को आकर्षित करने के लिए “रोजगार मेलों” का आयोजन किया और किसानों और महिलाओं के लिए कई योजनाओं की घोषणा की।
समाजवादी किलों पर योगी की पकड़
जो नौ सीटें उपचुनाव में जा रही हैं उनमें करहल, कुंदरकी, सिसामऊ और कटेहरी जैसे क्षेत्र समाजवादी पार्टी के गढ़ माने जाते हैं। चार महीने के आक्रामक अभियान में योगी ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संगठित किया और समाजवादी किले में सेंध लगाने के प्रयास किए। उन्होंने चुनाव प्रचार की रणनीति बनाने और उम्मीदवारों के चयन में भी प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने तीन मंत्रियों के समूह बनाए और प्रत्येक समूह को एक निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किया ताकि चुनाव प्रचार के लिए आवश्यक तैयारी पूरी की जा सके। योगी ने भाजपा प्रदेश इकाई के शीर्ष नेताओं की उच्चस्तरीय बैठकों की अध्यक्षता की और चुनाव अभियान को गति देने के निर्देश दिए।
अखिलेश का PDA और आत्मविश्वास
योगी के प्रचार अभियान की शैली के विपरीत, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव का चुनावी अभियान कार्यालय में ही सीमित रहा। उन्होंने पार्टी कार्यालय में बने एक विशेष चुनावी युद्ध कक्ष में बैठकर 9 विधानसभा क्षेत्रों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकों में रणनीति बनाई। अखिलेश को भरोसा है कि उनका आजमाया हुआ PDA फॉर्मूला (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) फिर से काम करेगा।
यह PDA फॉर्मूला लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन की बड़ी जीत का कारण बना था। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और उसने 37 लोकसभा सीटें जीतीं। उसकी सहयोगी कांग्रेस ने 6 सीटें जीतीं, जिससे उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन के सांसदों की संख्या 43 हो गई, जबकि NDA के पास 36 सीटें रहीं।
PDA का असर और बूथ स्तर पर तैयारी
अखिलेश यादव ने बूथ समितियों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने स्थानीय नेताओं के बीच विवाद सुलझाने, मतदाता सूचियों की जांच करने और सभी निर्वाचन क्षेत्रों में सोशल मीडिया उपस्थिति को मजबूत करने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, उन्होंने पार्टी नेताओं को भाजपा के मजबूत आधार वाले गांवों और मोहल्लों में बैठकें आयोजित करने के निर्देश दिए हैं।
भाजपा के मजबूत समर्थन आधार पर कब्जा करने की रणनीति
भाजपा ने अपने समर्थन आधार को फिर से हासिल करने के लिए नौ में से आठ सीटों पर चार ओबीसी उम्मीदवार उतारने का निर्णय लिया है। योगी आदित्यनाथ ने अपने राजनीतिक अनुभव और प्रभाव का पूरा उपयोग करते हुए प्रचार अभियान को व्यापक रूप देने की कोशिश की है। उन्होंने विपक्षी पार्टियों को मात देने के लिए अपने नेताओं को प्रेरित किया और सभी निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा को मजबूत करने का संदेश दिया।
आगे की चुनौती: भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच मुकाबला
यह उपचुनाव उत्तर प्रदेश की राजनीति में भविष्य की दिशा को तय कर सकता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने जहां पार्टी की प्रतिष्ठा को बचाने की चुनौती है, वहीं अखिलेश यादव के लिए यह उनके PDA फॉर्मूले की सफलता को साबित करने का मौका है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मायावती की BSP इस चुनाव में कुछ खास प्रदर्शन कर पाती है या नहीं। कांग्रेस की गैरमौजूदगी में भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच सीधा मुकाबला होने की उम्मीद है।
समाज और युवाओं के लिए संदेश
उत्तर प्रदेश के इस उपचुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव के लिए यह एक गंभीर परीक्षा होगी। यह उपचुनाव साबित कर सकता है कि योगी का करिश्मा अभी भी बरकरार है या नहीं और अखिलेश के PDA फॉर्मूले में कितनी दमखम है।