Thalassemia minor: थैलसीमिया एक आनुवांशिक रोग है जो माता-पिता से बच्चे को विरासत में मिलता है। यह एक प्रकार का रक्त संबंधित विकार होता है। अगर किसी बच्चे या वयस्क को इस बीमारी का संक्रमण हो जाता है, तो शरीर में रक्त निर्माण में समस्या होती है। जिसके कारण उसके शरीर पर अनीमिया के लक्षण स्पष्ट रूप से प्रकट होते हैं। इस बीमारी की पहचान केवल बच्चे के तीन महीने के बाद ही प्रारंभ होती है। इस बीमारी में रोगी के शरीर में रक्त की कमी होती है, जिसके कारण उसे बार-बार रक्त आवश्यकता होती है।
थैलसीमिया के दो प्रकार होते हैं:
- थैलसीमिया मेजर: इस बीमारी के संक्रमण का खतरा उन बच्चों में अधिक होता है जिनके दोनों माता-पिता के रक्त में थैलसीमिया होती है।
- थैलसीमिया माइनर: इसे उन बच्चों में देखा जाता है जिनके एक माता-पिता के रक्त में थैलसीमिया होती है। इस प्रकार में बच्चों में इसे प्राप्त करने का खतरा कम होता है।
थैलसीमिया की पहचान के लिए ब्लड टेस्ट महत्वपूर्ण होता है, खासकर विवाह से पहले इसे जांचना अत्यंत आवश्यक है। यदि बच्चे के दोनों पिता-माता में थैलसीमिया की संक्रमण होती है, तो उसके जन्म के समय बचाव के लिए सावधानी बरतनी चाहिए।
थैलसीमिया के लक्षणों में बच्चों के नाखून और जीभ का पीलापन, जॉ के ऊपर लाल दाग, वृद्धि की रोक, उम्र से छोटे दिखना, सूखी त्वचा, वजन न बढ़ना, हमेशा कमजोर और बीमार दिखना, सांस लेने में कठिनाई शामिल होती है। इसके इलाज में रक्त प्रवाहन की आवश्यकता होती है, लेकिन यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इससे शरीर में आयरन का इकट्ठा होने की संभावना बढ़ जाती है, जो ह्रदय, जिगर और फेफड़ों के लिए हानिकारक हो सकती है।